रिपोर्ट/संवाददाता मनी वर्मा*
कानपुर: हमारी बात आपको कुछ अजीब लग रही होगी। आप सोच रहे होगें कि यूक्रेन युद्ध से हमारा क्या लेना देना हम चिन्ता क्यों करें और फिर हमारी चिन्ता से क्या हो नही यूक्रेन पर हुआ है। यूक्रेन जाने और उसका काम हम बेकार में माथापच्ची क्यों करें आपकी बात सूर माथे लेकिन एक बात बताइये कि यदि यूक्रेन की ही तरह हमारे देश पर भी हमला होता एक एक के बाद एक खड़हर में तब्दील हो जा रहे होते. हम में से हजारों लोगों का रोड एक किया जा रहा होता, हम में से लाखों लोग अपना घर बार छोड़ कर भागने और पडोसी देशों में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया जा रहे होते, हमारी स्वतन्त्रता, सार्वभौमिकता और सम्प्रभुता का गला घोटा जा रहा होता हमें गुलाम बनाया जा रहा होता तो हम सोचते, क्या करते और क्या चाहते। हमलावरों का वीरतापूर्वक मुकाबला करने के साथ साथ क्या हम ये नहीं चाहते कि हम पर हो रहे इस अन्यायपूर्ण और क्रूर हमने का पूरी दुनिया पुरजोर विरोध करे और हमलावरों के खिलाफ प्रतिरोध में हमारे देश के साथ कंधा मिलाकर उठ खड़ी हो हम अन्याय, अत्याचार, आक्रमण और बर्बरता का शिकार हो तो पूरी दुलिया हमारा साथ दे लेकिन जब कोई दूसरा ऐसी परिस्थिति का शिकार हो गया हो तो हमसे क्या मतलब, हमारी यह सोंच ही हमारी सभी समस्याओं की जड़ है। जिस दिन से हम गली, मोहल्ले, शहर, प्रदेश, देश और दुनिया में हो रहे अत्याचारों, उत्पीडन, शोषण, लट न जन्य लोगों को खड़े करना शुरू कर देगें, पास दिन से दुलिया बदलना शुरू हो जायेगी। लोग लोगों के लिए खड़े होने लगे देश देशों के लिये खड़े होने लग जायें, तो यू टेन पर हमले जैसी घटनाओं का होना मुश्किल हो जायेगा यह नहीं कहा जा सकता कि जो अज यूक्रेन में हो रहा है व भारत में कभी नहीं होगा। यूक्रेन युद्ध महज एक क्षत्रिय युद्ध नहीं है। यह किन्ही दो देशों के बीच का आपसी मामला भी नहीं है। यह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से विश्व अर्थतन्त्र पर अपना नियंत्रण कायम रखने और विश्व अर्थतन्त्र कब्जा करने की साम्राज्यवादियों और नव सम्राज्यवादियों की स्वतरजित प्रतिस्पर्धा विश्व अर्थतन्त्र की नवीनतम परिणति है। इस प्रतिस्पर्धा ने विश्व को दियतनाम युद्ध, इराक युद्ध, अफगानिस्तान युद्ध जैसे अनेक युद्ध भेट किए हैं। इन युद्धो ने लाखों लोगों की हत्यायें की है और कर ड़ो लोगों की शरणार्थी बना डाला है। दुनिया के तमाम देशो में शुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई, बीमारी हजारी के लिए यह प्रतिस्पर्धा की जिम्मेदार है। यूक्रेन युद्ध का विरोध इस प्रतिस्पर्धा का भी विरोध है पर यूद्धेच चूहे का सबसे चिन्ताजनक पहलू यह है कि इसको लेकर स्पष्ट तौर दुनिया दो घड़ी में विभाजित हो रही है। लगता है यह स्वतंत्ररजित प्रतिस्पर्धा अपनी वरंग परिणति यनि तृतीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर आ पहुंची है। लगातार परमाणु युद्ध की धमकियां दी जा रही है और दोनो घड़ाँ के परमाणु युद्ध दस्ते हाई एलर्ट पर है। यूक्रेन युद्ध किसी भी समय यूक्रेन की सीमाओं से आहर निकल कर पूरे यूरोप में और फिर पूरी दुनिया में विस्तारित हो सकता है। इसी दुनिया में हमारा भारत भी है और हमारे दो-दो पड़ोसी देश, जो कि परमाणु शस्त्र सम्पन्न वह है। मौके की ताक मे एकदम तैयार बैठे हुए हैं। जो आज यूक्रेन में हो रहा है यह भारत में किसी भी और किसी भी समय हो सकता है। परमाणु शस्त्र, रासायनिक शस्त्र, जैविक शस्त्र, परम्परागत युद्ध के शस्त्र नही है। प्रतिस्पर्धा काल का शीत युद्ध काल के दौर में इनका भय दिखा कर इन ब्लॅकमेलिंग ग्लोबल इडियन्स फोरम सुमनराज, रामनवल कुश्वाहा (एड.). अजय गुप्ता (एड), विजय शंकर (नेता) (जनादेश) मंच, विजय चावला, रामशंकर (युवा भारत). .राकुमार अग्निहोत्री ज्ञान प्रकाश, माधव शरण मिश्र, रामकिशन, अरविन्द कुमार शर्मा, अजय प्रजापति, रामू प्रजापति, कमल पाल (एड.), प्रवीन श्रीवास्तव, सन्तोष सविता, विजय बहादुर पासवान, रामदेव पाल, नरेन्द्र नाथ (एड.), डा० तौहीद, अहमद हुसैन, विष्णु शुक्ला (एड.), हरिओम उत्तम।Attachments area